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फूल - मूल की अभिव्यक्ति || आचार्य प्रशांत,संत कबीर पर (2014)

2019-11-30 0 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१० दिसम्बर, २०१४<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />दोहा:<br />जोरू जूठणि जगत की, भले बुरे का बीच।<br />उत्यम ते अलगे रहै, निकटि रहै तै नीच।। (संत कबीर)<br /><br />प्रसंग:<br />क्या कर्म का फल इस जीवन में भुगतना पड़ता है?<br />जीवन में कर्मफल का कितना महत्व है?<br />सत्य से रिश्ता कैसे बनाया जाए?<br />संसार क्या है?<br />अपने कर्म की गुणवत्ता कैसे पता चले?<br />कोई भी कर्म निष्काम होकर कैसे करें?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते

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